आँखें हों लक्ष्य पर लगी, हों रास्ते दुर्गम घने |
ना मुड के देख नक्शे कदम, बने की ना बने ||
कारवाँ की सोच मत, तूँ अकेला ही चल निकल |
बनके स्वर्ण कल मिलेंगे, जो आज हैं लौह चने ||
राह की दुश्वारियों से तूँ, तनिक भी डरना नहीं |
हो हताश, उर अवसाद ले, पाँव पीछे धरना नहीं ||
नहीं विघ्न से वीर तो, होते कदाचित भयभीत हैं |
मरना तो है निज आन पे, भीरु बन मरना नहीं ||
देख ले ये कंठ सब, तो हैं गीत उसी के गा रहे |
बलिदान हुए जो लोक हित, या अब होने जा रहे ||
पाने को सुयश जगत में, बस पुरुषार्थ एक राह है |
लेना पकड़, हो सजग, जो अवसर तुझ पे आ रहे ||
चले चल, चले चल, देख ये साँस भी तो चल रही |
तम निशा आगोश में, है इक नवल भोर पल रही ||
पलट मत, पलट मत, अब तूँ पाँव पीछे खींच मत |
हर्गिज ना बुझने दे उसे, जो लौ लगन की जल रही ||
लौ लगन की जल रही, जो लौ लगन की जल रही ||