Tags
इतनी विधि क्यों देन दी, चित का हरने चैन |
व्याकुल करने बहुत थे, नारी तीखे नैन ||

उम्मेद देवल
11 Sunday Aug 2019
Posted Literature, Uncategorized
inTags
इतनी विधि क्यों देन दी, चित का हरने चैन |
व्याकुल करने बहुत थे, नारी तीखे नैन ||
उम्मेद देवल
03 Saturday Aug 2019
Posted Literature, Uncategorized
inTags
उम्मेद देवल
16 Thursday Aug 2018
Posted Uncategorized
inकब ज्योति होती क्षीण सूर्य की,
हाँ, दीपक अवश्य बुझा करते।
जिनका वास अनंत अंतस में,
जग में वो नाम कहाँ मरते??
जग विदित देह की नश्वरता,
तय होती काल की सीमा है।
पर पन्ने सत्कर्मों की पुस्तक के,
कभी काल से नहीं बिखरते।।
मन, वचन, कर्म से योग लिया,
जिसने सेवा और अभ्युदय का।
वो योगी काल के मस्तक पर हैं,
हर युग में अमिट चरण धरते।।
निस्वार्थ कर्म हो ध्येय, मंत्र भी,
सेवा सुमिरन, परहित पूजा हो।
वो पुण्य प्रसून इस वसुधा पर,
नरता सौरभ हित सदा महकते।।
————-उम्मेद देवल
01 Thursday Mar 2018
Posted Literature, Religion
inTags
चंग की थाप मृदंग मनोहर, बाँसुरिया धुन है मतवारी |
खेलत फाग सखा मिलिहीं सब, झूमत रंग गुलाल लगा री ||
नाचत मस्त धमाल मचावत, गावत सो मन आवत वांरी |
भेद नहीं बड छोटन के बिच, रंकन कोऊ न राव यहाँ री ||
उम्मेद देवल
10 Saturday Feb 2018
Posted Uncategorized
inराजत भाल मयंक मनोहर, सर्पन माल गले अति प्यारी।
धार बहे नित गंग जटा बिच, लोचन तीन ललाट मखारी।।
शैल सुता अँग वाम विराजत, गोद गजानन मंगलकारी।
छोड़ सभी छल छंदन को मन, नाम सदा शिव है शुभकारी।
———उम्मेद देवल
10 Saturday Feb 2018
Posted Literature, Religion
in≈ Comments Off on Namah Shivay :नमः शिवाय
राजत भाल मयंक मनोहर, सर्पन माल गले अति प्यारी।
धार बहे नित गंग जटा बिच, लोचन तीन ललाट मखारी।।
शैल सुता अँग वाम विराजत, गोद गजानन मंगलकारी।
छोड़ सभी छल छंदन को मन, नाम सदा शिव है शुभकारी।।
उम्मेद देवल
04 Monday Sep 2017
Posted Literature
inबैरी दो अँखियन बने, पड़े प्रेम की पीर |
वो आवे ना ये रुके, एक नींद इक नीर ||
उम्मेद देवल
26 Saturday Aug 2017
Posted Literature
inउम्मेद देवल
20 Sunday Aug 2017
Posted Literature
inवन काट सपाट किये गिरि को, जल मारग पाट दिया कचरा |
खिलवाड़ किया सँग कुदरत के, विष नीर समीर अपार भरा ||
अनजान बने दृग मूँद रहे , विपदा घन रोज रहे गहरा |
जग संकट डूब, अकाल सहे , कर खीझ रहे बरसे बदरा ||
उम्मेद देवल
08 Tuesday Aug 2017
Posted Literature
in
खुद हाथ डुबोय दई लुटिया, बिखरी गरिमा तिनका तिनका |
जब आपहि कारज हीन करे, इसमें फिर दोष भला किनका ||
मुख आदर लानत पीठ मिले, सच जान गई जनता जिनका |
अब मंच रु पंचन साख नहीं , रह केवल नाम गया इनका ||
उम्मेद देवल