कर ना कदे फैलावणु, भीख सदा ही हेय |
हिम्मत सूं लेणू पडै, मांग्या हक़ कुण देय ||1||
भामासा आँख्यां सजळ, मांगे वंशज भीख |
रोव राण प्रतापसी, आ ही दिइ के सीख ||2||
सबदां रा बरछा लियां, कविता तेज़ कटार |
मंच चढ्या ये कवि करे, घणी घणी ललकार ||3||
कहणू तो सहजा घणू, करणू घणू दुश्वार |
मायड भाषा कारनै, कुण मरबा ने त्यार ||4||
चेताणू जद ही भलो, खुद में होवे जोर |
बाकी तो बरसात में, दादुर केरा शोर ||5||
एक एक ग्यारह हुवे, आपां दिया पच्चीस |
एके सुर ये बोल ले, दिल्ली नवावे शीश ||6||
ईं धरणा, ईं मांग री, कठे पड़ी दरकार |
जो ये दो सौ बोल दे, खो देस्या सरकार ||7||
वे पच्चीस ये दोय सौ, मिलकर होवे लार |
दे राजस्थानी हक ने ,सामीं आ सरकार ||8||