हर पल को आज दिए जा, शब्दों को आवाज़ दिए जा |
सारा गगन तो तेरा है, बस पंखों को परवाज़ दिए जा ||
अवसादों को पस्त किए जा, जीवन हाला मस्त पिए जा |
जग वालों को तूँ तो अपने, जीने के अंदाज़ दिए जा ||
बाधाओं को मात दिए जा, मजलूमों का साथ दिए जा |
भूखे नंगों के सिर ऊपर, तूँ तो अब है ताज दिए जा ||
मौका अपने हाथ लिए जा, दिन के संग रात लिए जा |
साथी की दरकार नहीं है, बस अपने आगाज़ दिए जा ||
पीड़ित की तूँ पीर पिए जा, हमदर्दी और धीर दिए जा |
उस सूने मन आँगन को, नित नूतन तूँ साज दिए जा ||
शूल के बदले फूल दिए जा, अरमां संग उसूल दिए जा |
और नहीं बस गीता के से, तूँ तो जग में काज किए जा ||
सारा गगन तो तेरा है, बस पंखों को परवाज़ दिए जा |
पंखों को परवाज़ दिए जा, बस पंखों को परवाज़ दिए जा ||