पराये तुम नहीं होते और हम दिगर नहीं होते |
इत्तिहाम इक दूजे पे,जो लगाए गर नहीं होते ||
माना मानिंद कतरे के, जुदा तासीर है लेकिन,
ज़हाँ में अश्कओ”शबनम के, सागर नहीं होते ||
करते ना तामीर जो, आलिशां कोठियाँ हाकिम,
तो होते आशियाँ सबके, कोई बे घर नहीं होते ||
हज़ारों कीजिए कोशिश, मुकम्मल हो नहीं पाते,
अरमां तो हैं अरमां, ये कभी मुख़्तसर नहीं होते ||
होते न बीमार जो इन्सां, खुद की ही फ़ितरत से,
हरगिज़ वतन के हालत, कभी बदतर नहीं होते ||

उम्मेद देवल