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हज़ारों हज़ार दायरे, खड़े जो हम हैं कर रहे |
फकत नाम जिंदगी, सिमट सिमट मर रहे ||
भाव के आलोक पर, संकोच तम- घन खड़े |
शब्द अधर की क़ैद में, रहते मौन हैं पड़े ||
अज्ञात भय व्याप्त उर, सांस सांस डर रहे |
फकत नाम जिंदगी, सिमट सिमट मर रहे ||
पहचान मनुज की कठिन, प्रतिक्षण हो रही |
बांटने की होड़ में, अस्तित्व नरता खो रही ||
नहीं रुके हैं अब तलक, खण्ड-खण्ड कर रहे |
फकत नाम जिंदगी, सिमट सिमट मर रहे ||
समग्र हित, स्वार्थ में, निहित होता जा रहा |
विस्मृत कर विराट भाव, गीत निज गा रहा ||
पाने की अभिलाषा में, सर्वस्व अपना हर रहे |
फकत नाम जिंदगी, सिमट सिमट मर रहे ||
arvindupadhyayk said:
Awesome…… You are truly great poet…. Keep it up….
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UMMED DEVAL said:
हार्दिक आभार अरविन्द सा आपका स्नेह संबल है
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