Manhar : मनहर
12 Wednesday Aug 2015
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in12 Wednesday Aug 2015
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in10 Monday Aug 2015
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inसागर सुत, सुर कर सजे, रमा, शशी को भ्रात |
उच्च कुल उच्च संग रह, फिर क्यूँ शंख कहात ||
फूँक पराई ये बजे , उर ना बात समात |
पोल खोळ में पालकर, जग में शंख कहात ||
बीन, शहनाई, बासुरी, बजे फूँक बहु वाद्य |
पोल सभी उर पालते , हाय शंख दुर्भाग्य ||
पोल, फूँक सम है मगर, ये सुर सभी सजात |
स्वर एक बजता सदा , तब ही शंख कहात ||
युद्ध घोष, सुर आरती , और शवों के साथ |
हर अवसर हाजिर खड़ा, फिर भी शंख कहात ||
अवसर के अनुरूप ये , भाव नहीं प्रगटात |
इस कारण ही जगत में, सदा शंख कहलात ||
09 Sunday Aug 2015
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bhav-abhivykti, hindi kavita, hindi kavya, hindi literature, hindi poem, hindi poetry, waqt pravaah
योगी, योग, प्रयोग से, सायास से या संयोग से |
रुका ना पल है एक भी, इस वक़्त के प्रवाह का ||
ये चल रहा है बिना रुके, नहीं देखता है पलट के,
ना कोई रिश्ता दूर का, ना मीत कोई निकट के |
ना हर्ष से अभिभूत है, ना कोई असर है आह का,
रुका ना पल है एक भी, इस वक़्त के प्रवाह का ||
मिलता सभी को है मगर, रुकता किसी के पास ना,
सदा समभाव सकल से, कभी किसी का ख़ास ना |
नहीं मिन्नत, मनौती मानता, ना असर सलाह का,
रुका ना पल है एक भी, इस वक़्त के प्रवाह का ||
वे ही हैं अक्सर हारते, जो रह बैठ अवसर तलाशते,
कर्मयोगी चढ़ते पीठ पे, इस बेहताशा वक़्त भागते |
पथ में पर्वत सम भी है, ये प्रकाश भी है राह का |
रुका ना पल है एक भी, इस वक़्त के प्रवाह का ||
प्रत्येक क्षण संग बह, ना एक पल भी रुक के रह,
फिर हाथ कभी ना आएगी, गुजर गई जो यह शह |
बाँटता पुरुष्कार पुरषार्थ का, देता दंड भी गुनाह का,
रुका ना पल है एक भी, इस वक़्त के प्रवाह का ||
08 Saturday Aug 2015
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in06 Thursday Aug 2015
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