अब तो बस याद है, उसके लफ़्ज़ों के जाल की |
खूबसूरत फरेब की, उस मासूम के जमाल की ||
जज़्ब किये जो दर्दो गम, बताने से क्या हासिल |
कौन सुनता है यहाँ , दास्तां किसी के हाल की ||
आई थी कैसी फिज़ा, गई जो गुलशन उजाड़ के |
रवाँ है अब सूऐ -ए-दिल, ये आंधियाँ मलाल की ||
खतावर तो हम ही थे, तसव्वुर में लाते चले गए |
तोहमत दें क्यूँ और को, अपने कुसूरे ख्याल की ||
दीवानगी शायद इसे ही, कहती है दुनिया दोस्तों |
मर के भी करते हैं दुआ, कातिल के जलाल की ||
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हार्दिक आभार
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