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हमारा शरीर एक उर्जा केंद्र है,इसमें सतत उर्जा का संचरण होता रहता है,यह उर्जा ग्रहित,संचित,और प्रवाहित तीनों रूपों में रहती है |उर्जा का एक चक्र हमारे मस्तक के चारों और वलियत होता है,जिसे औरा कहते हैं,जिसे सामान्य दृष्टी से नहीं देखा जा सकता है |इसका प्रतिरूप हम देव प्रतिमाओं में देख सकते हैं |जिसका जितना बड़ा औरा होता है,वह उतना ही ज्यादा उर्जावान होता है |

हमारे शरीर के तीन महत्वपूर्ण अंग हैं,मस्तक,हाथ और पैर | मस्तक उर्जा का ग्राहता,हाथ ग्राहता और प्रदाता,तथा पैर प्रदाता मात्र होते हैं |

जब हम किसी दूसरे का स्पर्श करतें हैं तो उर्जा का आदान-प्रदान होता है |आपने इस प्रथा पर यदि गौर किया तो पायेंगे, कि हम अपनों से बड़ों का हाथ आशीर्वाद स्वरूप अपने मस्तक पर रखवाते हैं,उद्देश्य यही होता है कि उनकी संचित उर्जा का कुछ अंश हमारा मस्तक ग्रहण कर सके |हम अपनों से बड़ों के चरण-स्पर्श करते हैं ताकि उनके चरणों से प्रवाहित उर्जा को हमारे हाथ ग्रहण कर सकें |उर्जा प्राप्ति के उद्देश्यार्थ ही हम देव प्रतिमाओं तथा बड़ों के चरण छूते हैं,तथा मस्तक पर हाथ रखवाते हैं |

हमारी संस्कृति में अभिवादन की परम्परा में हाथ जोड़ने के पीछे यही मूल कारण था कि हमारी उर्जा संचित रहे,उसका प्रसारण ना हो |पाश्चात्य संस्कृति कि नक़ल कर हम अभिवादन स्वरुप हाथ मिलाते हैं,और अपनी संचित उर्जा का क्षय करते हैं |

यदि आपको अपनी उर्जा का संचय करना है,तो अभिवादन हाथ जोड़ कर कीजिए,हाथ मिलकर नहीं |अपनों से कम उर्जावान लोगों के स्पर्श से यथासंभव बचिए|

उर्जा आपकी स्वयं की निधि है,निर्णय भी आप स्वयं को करना है |